योगरतो वा भोगरतो वा
संगरतो वा संगविहीनः।
यस्य ब्रह्मणि रमते चित्तं नन्दति नन्दति नन्दति एव ॥19॥
चाहे हम योग की राह पर
चलें या हम अपने सांसारिक उत्तरदायित्वों को पूर्ण करना ही बेहतर समझें, यदि हमने अपने
आप को परमात्मा से जोड़ लें तो हमें सदैव सुख प्राप्त होगा।
यावत्पवनो निवसति देहे
तावत् पृच्छति कुशलं गेहे।
गतवति वायौ देहापाये, भार्या बिभ्यति तस्मिन्काये ॥6॥
तुम्हारे मृत्यु के एक
क्षण पश्चात ही वह तुम्हारा दाह-संस्कार कर देंगे। यहाँ तक की तुम्हारी पत्नी जिसके
साथ तुम ने अपनी पूरी ज़िन्दगी गुज़ारी, वह भी तुम्हारे मृत शरीर को घृणित दृष्टि से
देखेगी।
जटिलो मुण्डी लुञ्चित
केशः काषायाम्बर-बहुकृतवेषः।
पश्यन्नपि च न पश्यति मूढः उदरनिमित्तं बहुकृत शोकः ॥14॥
इस संसार का हर व्यक्ति
चाहे वह दिखने में कैसा भी हो, चाहे वह किसी भी रंग का वस्त्र धारण करता हो, निरंतर
कर्म करता रहता है। क्यों? केवल रोज़ी रोटी कमाने के लिए। फिर भी पता नहीं क्यों हम
सब कुछ जान कर भी अनजान बनें रहते हैं।
का ते कान्ता धनगतचिन्ता
वातुल किं तव नास्ति नियन्ता।
त्रिजगति सज्जन संगतिरेका भवति भवार्णवतरणे नौका ॥13॥
सांसारिक मोह माया, धन
और स्त्री के बन्धनों में फंस कर एवं व्यर्थ की चिंता कर के हमें कुछ भी हासिल नहीं
होगा। क्यों हम सदैव अपने आप को इन चिंताओं से घेरे रखते हैं? क्यों हम महात्माओं से
प्रेरणा लेकर उनके दिखाए हुए मार्ग पर नहीं चलते? संत महात्माओं से जुड़ कर अथवा उनके
दिए गए उपदेशों का पालन कर के ही हम सांसारिक बन्धनों एवं व्यर्थ की चिंताओं से मुक्त
हो सकते हैं ।
मा कुरु धन-जन-यौवन-गर्वं,
हरति निमेषात्कालः सर्वम्।
मायामयमिदमखिलं हित्वा ब्रह्म पदं त्वं प्रविश विदित्वा
॥11॥
हमारे मित्र, यह धन दौलत,
हमारी सुन्दरता एवं हमारा गुरूर, सब एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा। कुछ भी अमर नहीं
है। यह संसार झूठ एवं कल्पनाओं का पुलिंदा है। हमें सदैव परम ज्ञान प्राप्त करने की
कामना करनी चाहिए।
नारीस्तनभरनाभीनिवेशं,
दृष्ट्वा- माया-मोहावेशम्।
एतन्मांस-वसादि-विकारं, मनसि विचिन्तय बारम्बाररम् ॥ 3॥
हम स्त्री की सुन्दरता
से मोहित होकर उसे पाने की निरंतर कोशिश करते हैं। परन्तु हमें यह ध्यान रखना चाहिए
कि यह सुन्दर शरीर सिर्फ हाड़ मांस का टुकड़ा है।
कुरुते गंगासागरगमनं
व्रतपरिपालनमथवा दानम्।
ज्ञानविहिनः सर्वमतेन मुक्तिः न भवति जन्मशतेन ॥17॥
हमें मुक्ति की प्राप्ति
सिर्फ आत्मज्ञान के द्वारा प्राप्त हो सकती है। लम्बी यात्रा पर जाने से या कठिन व्रत
रखने से हमें परम ज्ञान अथवा मोक्ष प्राप्त नहीं होगा।
प्राणायामं प्रत्याहारं
नित्यानित्य विवेकविचारम्।
जाप्यसमेत समाधिविधानं कुर्ववधानं महदवधानम् ॥30॥
हमें सदैव इस बात को
ध्यान में रखना चाहिए की यह संसार नश्वर है। हमें अपनी सांस, अपना भोजन और अपना चाल
चलन संतुलित रखना चाहिए। हमें सचेत होकर उस ईश्वर पर अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर
देना चाहिए।
सत्संगत्वे निःसंगत्वं,
निःसंगत्वे निर्मोहत्वं।
निर्मोहत्वे निश्चलतत्त्वं निश्चलतत्त्वे जीवन्मुक्तिः ॥9॥
संत परमात्माओ के साथ
उठने बैठने से हम सांसारिक वस्तुओं एवं बंधनों से दूर होने लगते हैं। ऐसे हमें सुख
की प्राप्ति होती है। सब बन्धनों से मुक्त होकर ही हम उस परम ज्ञान की प्राप्ति कर
सकते हैं।
बालस्तावत् क्रीडासक्तः,
तरुणस्तावत् तरुणीसक्तः।
वृद्धस्तावत् चिन्तामग्नः पारे ब्रह्मणि कोऽपि न लग्नः ॥7॥
सारे बालक क्रीडा में
व्यस्त हैं और नौजवान अपनी इन्द्रियों को संतुष्ट करने में समय बिता रहे हैं। बुज़ुर्ग
केवल चिंता करने में व्यस्त हैं। किसी के पास भी उस परमात्मा को स्मरण करने का वक्त
नहीं।
पुनरपि जननं पुनरपि मरणं
पुनरपि जननीजठरे शयनम्।
इह संसारे बहुदुस्तारे कृपयापारे पाहि मुरारे ॥21॥
हे परम पूज्य परमात्मा!
मुझे अपनी शरण में ले लो। मैं इस जन्म और मृत्यु के चक्कर से मुक्ति प्राप्त करना चाहता
हूँ। मुझे इस संसार रूपी विशाल समुद्र को पार करने की शक्ति दो ईश्वर।
भज गोविन्दं भज गोविन्दं,
गोविन्दं भज मूढ़मते।
सम्प्राप्ते सन्निहिते मरणे, नहि नहि रक्षति डुकृञ् करणे ॥1॥
हे भटके हुए प्राणी,
सदैव परमात्मा का ध्यान कर क्योंकि तेरी अंतिम सांस के वक्त तेरा यह सांसारिक ज्ञान
तेरे काम नहीं आएगा। सब नष्ट हो जाएगा।
No comments:
Post a Comment