Friday, 24 April 2020

सौन्दर्यलहरी


सौन्दर्यलहरी



महीं मूलाधारे कमपि मणिपूरे हुतवहं
स्थितं स्वाधिष्ठाने हृदि मरुतमाकाशमुपरि
मनोऽपि भ्रूमध्ये सकलमपि भित्वा कलपकथं
सहस्रारे पद्मे सह रहसि पत्या विहरसे

सुधाधारासारैश्चरणयुगलान्तर्विगलितैः
प्रपञ्चं सिञ्चन्ती पुनरपि रसाम्नायमहसः
अवाप्य स्वां भूमिं भुजगनिभमध्युष्टवलयं
स्वमात्मानं कृत्वा स्वपिषि कुलकुण्डे कुहरिणि

जगत्सूते धाता हरिरवति रुद्रः क्षपयते 
तिरस्कुर्वन्नेतत्स्वमपि वपुरीशस्तिरयति
सदापूर्वः सर्वं तदिदमनुगृह्णाति शिव
स्तवाज्ञामालम्ब्य क्षणचलितयोर्भ्रूलतिकयोः

जपो जल्पः शिल्पं सकलमपि मुद्राविरचना
गतिः प्रादक्षिण्यक्रमणमशनाद्याहुतिविधिः
प्रणामस्संवेशस्सुखमखिलमात्मार्पणदृशा
सपर्यापर्यायस्तव भवतु यन्मे विलसितम्

तव स्वाधिष्ठाने हुतवहमधिष्ठाय निरतं
तमीडे संवर्तं जननि महतीं तां समयाम्
यदालोके लोकान् दहति महति क्रोधकलिते
दयार्द्रा या दृष्टिः शिशिरमुपचारं रचयति

तवाधारे मूले सह समयया लास्यपरया
नवात्मानं मन्ये नवरसमहाताण्डवनटम्
 उभाभ्यामेताभ्यामुदयविधिमुद्दिश्य दयया
सनाथाभ्यां जज्ञे जनकजननीमज्जगदिदम्

विभक्तत्रैवर्ण्यं व्यतिकरितलीलाञ्जनतया
विभाति त्वन्नेत्रत्रितयमिदमीशानदयिते
पुनः स्रष्टुं देवान् द्रुहिणहरिरुद्रानुपरतान्
रजः सत्त्वं बिभ्रत्तम इति गुणानां त्रयमिव

  तत्सत्

भैरवी स्तवन (Bharavi Stavan)


।।ॐ।। भैरवी स्तवन।।ॐ।।


तातो माता बंधुर दाता
पुत्रो पुत्री भर्थो भरथा
जानामि विद्या वृथिर ममेय
गतिस्वम  गतिस्वम त्वम एका भैरवी।

जानामि दानम ध्यान योगम
जानामि तन्त्रम स्त्रोत्र मंत्रम
जानामि पूजा न्यास योगम
गतिस्वम  गतिस्वम त्वम एका भैरवी।।

प्रेजेशम, रमेशम महेशम सुरेशम
दिनेशंस निषिधेश्वरम वा कदाचित
जानामि चानयत सदाहम शरण्य
गतिस्वम  गतिस्वम त्वम एका भैरवी।।

भवाबद्ध पारे महादुख भीरु
प्रपात प्रकामें प्रलोभे प्रमाथ
कुसंसार पाश प्रबधा सदाहम
गतिस्वम  गतिस्वम त्वम एका भैरवी।।।

जानामि पुण्यं, जानामि तीर्थम
जानामि मुक्तिम, लयम वा कदाचित
जानामि भक्तिम, वृतम वापी मात
गतिस्थवम गतिस्थवम तवं एका भैरवी।।।

विवाधे, विषादे, प्रमाधे, प्रवासे
जले चा नले पर्वते शत्रु मध्ये!
अरण्ये, शरण्ये सदा मम प्रपाहि
गतिस्थवम गतिस्थवम तवं एका भैरवी।।
🙏🙏🙏

नाग स्तोत्रम् (Naga Stotram)


नाग स्तोत्रम् 


नाग नाग नागेन्द्राय
अनंत नागेन्द्राय
आदिशेष नागेन्द्राय
नाग नाग नागेन्द्राय
वासुकि नागेन्द्राय
कर्कोटक नागेन्द्राय
नाग नाग नागेन्द्राय
तक्षक नागेन्द्राय
पर्वधक्षा नागेन्द्राय
मनासा नागेन्द्राय
पदमनाभ नागेन्द्राय
नाग नाग नागेन्द्राय
आस्तिक नागेन्द्राय
उलूपी नागेन्द्राय
नाग नाग नागेन्द्राय
कुंडलिनी नागेन्द्राय
अनंत नागेन्द्राय
आदिशेष नागेन्द्राय
नाग नाग नागेन्द्राय

श्रीगुरुपादुका स्तोत्रम् (GURU PADUKA STOTRAM)


श्रीगुरुपादुका स्तोत्रम् 



अनंतसंसार समुद्रतार
नौकायिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्याम् |
वैराग्यसाम्राज्यदपूजनाभ्यां
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् || 1 ||

कवित्ववाराशिनिशाकराभ्यां
दौर्भाग्यदावां बुदमालिकाभ्याम् |
दूरिकृतानम्र विपत्ततिभ्यां
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् || 2 ||

नता ययोः श्रीपतितां समीयुः
कदाचिदप्याशु दरिद्रवर्याः |
मूकाश्र्च वाचस्पतितां हि ताभ्यां
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् || 3 ||

नालीकनीकाश पदाहृताभ्यां
नानाविमोहादि निवारिकाभ्यां |
नमज्जनाभीष्टततिप्रदाभ्यां
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् || 4 ||

नृपालि मौलिव्रजरत्नकांति
सरिद्विराजत् झषकन्यकाभ्यां |
नृपत्वदाभ्यां नतलोकपंकते
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् || 5 ||

पापांधकारार्क परंपराभ्यां
तापत्रयाहींद्र खगेश्र्वराभ्यां
जाड्याब्धि संशोषण वाडवाभ्यां
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् || 6 ||

शमादिषट्क प्रदवैभवाभ्यां
समाधिदान व्रतदीक्षिताभ्यां |
रमाधवांध्रिस्थिरभक्तिदाभ्यां
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् || 7 ||

स्वार्चापराणां अखिलेष्टदाभ्यां
स्वाहासहायाक्षधुरंधराभ्यां |
स्वांताच्छभावप्रदपूजनाभ्यां
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् || 8 ||

कामादिसर्प व्रजगारुडाभ्यां
विवेकवैराग्य निधिप्रदाभ्यां |
बोधप्रदाभ्यां दृतमोक्षदाभ्यां
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम् || 9 ||

Wednesday, 22 April 2020

गुरू पूजा (Guru Pooja)

गुरू पूजा

अपवित्रः पवित्रो वा, सर्वावस्थां गतोऽपी वा।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं, स बाह्याभान्तरः शुचिः।।

आवाह्नम्

नारायणं पद्मभुवं् वशिष्ठं, शक्तिम् च तत्पुत्रपराशरं चः व्यासं शुकं गौड़पदं महान्तं, गोविन्दयोगिन्द्रमथास्य शिष्यम् श्री शंकराचार्यमथास्य पद्मपादं चः हस्तामलकं चः शिष्यम्। तं तोटकं वार्तिककारमन्यानस्मदगुरून् संततमानतोऽस्मि।। श्रुतिस्मृति पुरणानामलयं करुणालयम्। नमामि भगवत्पादं शंकरम् लोकशंकरम्।। शंकरम् शंकराचार्यम् केशवं ब्राद्रायणम्। सूत्र भाष्यः कृतौ वन्दे, भगवन्तौ पुनः पुनः।। यदवारे निखिला निलिम्पः परिषद, सिद्धिं विद्यते निषम्। श्रीमत् श्री लसितं जगद्गुरुपदं, नतवात्मा तृप्तिम् गतः।। लोकागनः न पयोधः पटनाधुरं, श्री शंकरं शर्मदम्। ब्रह्मानन्द सरस्वतीं च श्री ब्रह्मम्, ध्यायामि ज्योर्तिमयम्।

आवह्नम्

आवह्नम् समर्पयामि श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः। आसनं समर्पयामि श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः। स्नानम् समर्पयामि श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः। वस्त्रम् समर्पयामि श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः। चंदनम् समर्पयामि श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः। पुष्पम् समर्पयामि श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः। धुपम् समर्पयामि श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः। दीपम् समर्पयामि श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः। आचमन्यम समर्पयामि श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः। नैवेद्यम् समर्पयामि श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः। आचमन्यम् समर्पयामि श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः। ताम्बुलम् समर्पयामि श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः। श्रीफलम् समर्पयामि श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः।

आर्रतिक्यम्

कर्पूर गौरम् करुणावतारम् संसार सारम् भुजगेंद्रहारम् सदा वसंतम् हिर्दयारविन्दे भवम् भवानि सहितं नमामि आर्रातिक्यम् समर्पयामि श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः। आचमन्यम् समर्पयामि श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः।

पुष्पांजलिं

गुरुब्र्रह्मः गुरुर्विष्णुः, गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परमब्रह्म, तस्मै श्री गुरूवे नमः।। अखण्डमण्डलाकारं, व्याप्तं येन चराचरम्। तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्री गुरूवै नमः।। श्री ब्रह्मानन्दं परमसुखदम्, केवलं ज्ञानमूर्तिं। द्वन्द्वांतीतं गगनसदृशं, तत्वमस्यादि लक्ष्यम्।। एकं नित्यं विमलमचलं, सर्वधीसाक्षिभूतं। भावातीतं त्रिगुणरहितं, सद्गुरुं तं नमामि।। अज्ञान तिमिरान्धस्य, ज्ञानाज्जन शलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन, तस्मै श्री गुरवे नमः।। पुष्पांजलिम् समर्पयामि श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः।।

भज गोविन्दं (योगरतो वा भोगरतो वा)


योगरतो वा भोगरतो वा संगरतो वा संगविहीनः। 
यस्य ब्रह्मणि रमते चित्तं नन्दति नन्दति नन्दति एव ॥19॥

चाहे हम योग की राह पर चलें या हम अपने सांसारिक उत्तरदायित्वों को पूर्ण करना ही बेहतर समझें, यदि हमने अपने आप को परमात्मा से जोड़ लें तो हमें सदैव सुख प्राप्त होगा।

यावत्पवनो निवसति देहे तावत् पृच्छति कुशलं गेहे। 
गतवति वायौ देहापाये, भार्या बिभ्यति तस्मिन्काये ॥6॥

तुम्हारे मृत्यु के एक क्षण पश्चात ही वह तुम्हारा दाह-संस्कार कर देंगे। यहाँ तक की तुम्हारी पत्नी जिसके साथ तुम ने अपनी पूरी ज़िन्दगी गुज़ारी, वह भी तुम्हारे मृत शरीर को घृणित दृष्टि से देखेगी।

जटिलो मुण्डी लुञ्चित केशः काषायाम्बर-बहुकृतवेषः।
पश्यन्नपि च न पश्यति मूढः उदरनिमित्तं बहुकृत शोकः ॥14॥

इस संसार का हर व्यक्ति चाहे वह दिखने में कैसा भी हो, चाहे वह किसी भी रंग का वस्त्र धारण करता हो, निरंतर कर्म करता रहता है। क्यों? केवल रोज़ी रोटी कमाने के लिए। फिर भी पता नहीं क्यों हम सब कुछ जान कर भी अनजान बनें रहते हैं।

का ते कान्ता धनगतचिन्ता वातुल किं तव नास्ति नियन्ता। 
त्रिजगति सज्जन संगतिरेका भवति भवार्णवतरणे नौका ॥13॥

सांसारिक मोह माया, धन और स्त्री के बन्धनों में फंस कर एवं व्यर्थ की चिंता कर के हमें कुछ भी हासिल नहीं होगा। क्यों हम सदैव अपने आप को इन चिंताओं से घेरे रखते हैं? क्यों हम महात्माओं से प्रेरणा लेकर उनके दिखाए हुए मार्ग पर नहीं चलते? संत महात्माओं से जुड़ कर अथवा उनके दिए गए उपदेशों का पालन कर के ही हम सांसारिक बन्धनों एवं व्यर्थ की चिंताओं से मुक्त हो सकते हैं ।

मा कुरु धन-जन-यौवन-गर्वं, हरति निमेषात्कालः सर्वम्। 
मायामयमिदमखिलं हित्वा ब्रह्म पदं त्वं प्रविश विदित्वा ॥11॥

हमारे मित्र, यह धन दौलत, हमारी सुन्दरता एवं हमारा गुरूर, सब एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा। कुछ भी अमर नहीं है। यह संसार झूठ एवं कल्पनाओं का पुलिंदा है। हमें सदैव परम ज्ञान प्राप्त करने की कामना करनी चाहिए।

नारीस्तनभरनाभीनिवेशं, दृष्ट्वा- माया-मोहावेशम्।
एतन्मांस-वसादि-विकारं, मनसि विचिन्तय बारम्बाररम् ॥ 3॥

हम स्त्री की सुन्दरता से मोहित होकर उसे पाने की निरंतर कोशिश करते हैं। परन्तु हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि यह सुन्दर शरीर सिर्फ हाड़ मांस का टुकड़ा है।

कुरुते गंगासागरगमनं व्रतपरिपालनमथवा दानम्। 
ज्ञानविहिनः सर्वमतेन मुक्तिः न भवति जन्मशतेन ॥17॥

हमें मुक्ति की प्राप्ति सिर्फ आत्मज्ञान के द्वारा प्राप्त हो सकती है। लम्बी यात्रा पर जाने से या कठिन व्रत रखने से हमें परम ज्ञान अथवा मोक्ष प्राप्त नहीं होगा।

प्राणायामं प्रत्याहारं नित्यानित्य विवेकविचारम्। 
जाप्यसमेत समाधिविधानं कुर्ववधानं महदवधानम् ॥30॥

हमें सदैव इस बात को ध्यान में रखना चाहिए की यह संसार नश्वर है। हमें अपनी सांस, अपना भोजन और अपना चाल चलन संतुलित रखना चाहिए। हमें सचेत होकर उस ईश्वर पर अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर देना चाहिए।

सत्संगत्वे निःसंगत्वं, निःसंगत्वे निर्मोहत्वं।
निर्मोहत्वे निश्चलतत्त्वं निश्चलतत्त्वे जीवन्मुक्तिः ॥9॥

संत परमात्माओ के साथ उठने बैठने से हम सांसारिक वस्तुओं एवं बंधनों से दूर होने लगते हैं। ऐसे हमें सुख की प्राप्ति होती है। सब बन्धनों से मुक्त होकर ही हम उस परम ज्ञान की प्राप्ति कर सकते हैं।

बालस्तावत् क्रीडासक्तः, तरुणस्तावत् तरुणीसक्तः। 
वृद्धस्तावत् चिन्तामग्नः पारे ब्रह्मणि कोऽपि न लग्नः ॥7॥

सारे बालक क्रीडा में व्यस्त हैं और नौजवान अपनी इन्द्रियों को संतुष्ट करने में समय बिता रहे हैं। बुज़ुर्ग केवल चिंता करने में व्यस्त हैं। किसी के पास भी उस परमात्मा को स्मरण करने का वक्त नहीं।

पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पुनरपि जननीजठरे शयनम्। 
इह संसारे बहुदुस्तारे कृपयापारे पाहि मुरारे ॥21॥

हे परम पूज्य परमात्मा! मुझे अपनी शरण में ले लो। मैं इस जन्म और मृत्यु के चक्कर से मुक्ति प्राप्त करना चाहता हूँ। मुझे इस संसार रूपी विशाल समुद्र को पार करने की शक्ति दो ईश्वर।

भज गोविन्दं भज गोविन्दं, गोविन्दं भज मूढ़मते। 
सम्प्राप्ते सन्निहिते मरणे, नहि नहि रक्षति डुकृञ् करणे ॥1॥

हे भटके हुए प्राणी, सदैव परमात्मा का ध्यान कर क्योंकि तेरी अंतिम सांस के वक्त तेरा यह सांसारिक ज्ञान तेरे काम नहीं आएगा। सब नष्ट हो जाएगा।

चन्द्रशेखर अष्टकम (Chandrashekhara Ashtakam)


चन्द्रशेखर अष्टकम 


चंद्रशेखर  चंद्रशेखर  चंद्रशेखर  रक्ष माम्।।1।।
चंद्रशेखर  चंद्रशेखर  चंद्रशेखर  पाहि माम्।
कोई भक्त भवानीपति भालचन्द्र भगवान् शिव को अपना अनन्यशरण मानता हुआ, मस्तक पर जिनके चन्द्रमाविराजमान है, इस प्रकार के चन्द्रशेखर भगवान् शिव को सम्बोधित करता हुआ कहता है कि, हे चन्द्रशेखर प्रभो मेरी रक्षा करो, मेरी रक्षा करो, मैं एकमात्रा आपकी शरण में हूँ। यहाँ सम्बोधन में बहुत्व की वीप्सा भक्त की अनन्यशरणता को सूचित करती है।

रत्नासानुशरासनं रजताशिृनिकेतनम्।
सिनिीकृतपगेरमच्युतायनसायकम्।।
क्षिप्रदग्ध्पुरत्रायं त्रिादिवालयैरभिवन्दितम्।
चंद्रशेखर माश्रये मम करिष्यति वै यम:।।2।।

हिमालय में जिनका निवास हैजिन्होंने सुमेरु पर्वत को धनुष और वासुकि सर्प की प्रत्यंचा यानि धनुष  की डोरी तथा भगवान् विष्णु को वाण बनाकर त्रिपुर का दाह किया हैअतएव देवताओं ने भी जिनकी वन्दना की हैऐसे चन्द्रशेखर भगवान् शिव का आश्रय लेता हूँतब यमराज भी मेरा क्या कर लेगा अर्थात् यह सर्ववदित है कि चन्द्रशेखर भगवान् का आश्रय लेने पर यमराज मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है।

पपादपपुष्पगन्ध्पदाम्बुजद्वयशोभितम्
भाललोचनजातपावकदग्ध्मन्मथ्रपिग्रहम्
भस्मदिग्ध्कलेवरं भवनाशनं भवमव्ययम्
चंद्रशेखर माश्रये मम करिष्यति वै यम:।।3।।

मैं उस भगवान् चन्द्रशेखर का आश्रय लेता हूँ, जिनके चरणकमल मन्दारादि पाँच देवपादपों के पुष्पों से सुगन्धि्त हैं, और जिनके भाल में स्थित तृतीय लोचनाग्नि के द्वारा कामदेव का कलेवर भस्म हो गया था, और स्वयं जो भस्म रमाये हुए हैं, इस संसार को प्रलयकाल में जो कर देते हैं, अथवा जिनकी आराधना से भक्त को फिर इस संसार में नहीं आना पड़ता है, अर्थात् जो मोक्ष को प्रदान करते हैं, स्वयं जो इस संसार के कारण भी हैं, यह सब होते हुए भी जो अक्षयअमर शांत हैं।

मत्तवारणमुख्यचर्मकृत्तोत्तरीयमनोहरम्।
पजासनपालोचन पूजितांघ्रिसरोरुहम्।।
देवसिन्ध्ुतरसीकरसित्तफशुभ्रजटाध्रम्।
चंद्रशेखर माश्रये मम करिष्यति वै यम:।।4।।

मैं ऐसे भगवान् चन्द्रशेखर का आश्रय लेता हूँजिन्होंने गजराज के चर्म का उत्तरीय दुपा बनाया हैइससे भी जो मनोहर ही मालूम पड़ते हैंऔर पद्मासनब्रा और कमलनमन वष्णु के द्वारा जिनके चरणकमल सर्वदा वन्दनीय हैंतथा जिनकी जटायेंमन्दाकिनी के तरों के जलकणों सेस्वच्छ दिखाई दे रही है।

यक्षराजसखं भगगाक्षहरं भुजविभूषणम्।
शैलराजसुतापरिष्कृतचारुवामकलेवरम।।
क्ष्वेडनीलगलं परध्धरिणं मृगधरिणम्।
चंद्रशेखर माश्रये मम करिष्यति वै यम:।।5।।

मैं ऐसे भगवान् चन्द्रशेखर का आश्रय लेता हूँ, जो यक्षराज कुबेर के सखा मित्रा है, और इन्द्र के भगाक्षरुप दोष को दूर करने वाले हैं, भुज का भूषण बनाए हुए हैं, और शैलराजसूता माता पार्वती से समालिति है वामभाग जिनका, देवताओं के कल्याणार्थ समुद्रमन्थन के अवसर पर जिन्होंने विषपान कर लिया था, इसी के कारण जिनका कण्ठ नीलवर्ण का हो गया है, जो परशु आदि आयुधें को धरण करते हैं तथा मृगलाछनचन्द्र को भी धरण करते हैं।

कुण्डलीकृतकुण्डलेरकुण्डलं वृषवाहनम्।
नारदादिमुनीरस्तुतिवैभवं भुवनेरम्।।
अन्ध्कान्ध्कमाश्रितामरपादपं शमनान्तकम्।
चंद्रशेखर माश्रये मम करिष्यति वै यम:।।6।।

मैं ऐसे भगवान् चन्द्रशेखर का आश्रय लेता हूँ, जिन्होंने कुण्डलाकार वासुकि सर्पराज का कर्णाभरण बनाया है, और बूढा बैल जिनका वाहन है, तथा नारदादि मुनीयो के द्वारा जिनके वैभव की स्तुति की गई है, जो सारे भुवनों के ईश्वर हैं, अथवा उड़ीसा में स्थित भुवनेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हैं। अन्ध्कासुर तथा वृष्णिवंश ने अमरपादपरूप में जिसका आश्रय लिया हुआ है, जो शमनयमराज के भी अन्तक हैं।

भेषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणम्।
दक्षयज्ञविनाशनं त्रिागुणात्मकं त्रिाविलोचनम्।।
भुत्तिफमुत्तिफपफलप्रदं सकलाघसनिबर्हणम्।
चंद्रशेखर माश्रये मम करिष्यति वै यम:।।7।।

मैं ऐसे भगवान् चन्द्रशेखर का आश्रय लेता हूँ, जो इस संसार रूपी रोग के लिए औषध् हैं, और समस्त विपत्तियों को दूर करने वाले हैं, जिन्होंने दक्षप्रजापति के यज्ञ का विध्वंश किया है, जो सत्व, रजस तमो गणात्मक है, अर्थात् स्थिति की अवस्था में जो सत्वरूप धारण करते हैं, और उत्पत्ति की अवस्था में जो रजोगुणरूप धारण करते हैं, और संहार की अवस्था में जो धारण का रूप धरण करते हैं। लोकविलक्षण जिनके तीन लोचन हैं, जो मुक्ति  मुक्तिरूप फल को प्रदान करते हैं, और भक्तो के समस्त पापजन्य ताप को दूर कर देते हैं।

भत्तफवत्सलमखचत निध्मिक्षयं हरिदम्बरम्।
सर्वभूतपत परात्परमप्रमेयमनुत्तमम्।।
सोमवारिदभूहुताशनसोमपानिलवाकृतिम्।
चंद्रशेखर माश्रये मम करिष्यति वै यम:।।8।।

मैं ऐसे भगवान् चन्द्रशेखर का आश्रय लेता हूँ, जो भक्तवत्सल हैं, और भक्तो से पूजित हैं, तथा अक्षयनिधि् के समान हैं, जो दिगम्बर हैं, सभी भूतों प्राणियों के स्वामी हैं, सबसे श्रेष्ठ, अप्रमेय जिनके विषय में किसी रूप गुणादि को लेकर इदमिथ्या निर्णय नहीं किया जा सकता है, जिनको प्राप्त कर फिर  आगे किसी पदार्थ को पाने की इच्छा ही नहीं होती है, अर्थात् ये ही प्राप्तव्य वस्तुओं में सर्वश्रेष्ठ है, और जो सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु , आकाशादि आठ रूपों में विराजमान हैं।

विसृिविधयिनं पुनरेव पालनतत्परम्।
संहरन्तमपि प्रपमशेषलोकनिवासिनम्।।
कीडयन्तमहखनशं गणनाथयूथसमन्वितम्।
चंद्रशेखर माश्रये मम करिष्यति वै यम:।।9।।

मैं ऐसे भगवान् चन्द्रशेखर का आश्रय लेता हूँ, जो रजोगुण समन्वित होकर समस्त संसार की रचना करते हैं, और फिर सत्वगुण का आश्रय लेकर इस संसार का पालन करते हैं, तथा अन्त में तमोगुण का आश्रय लेकर जो अखिल प्रपच का संहार करते हैं, संसार की स्थिति में जो समस्त प्राणियों को तत्वप्राणी के कर्मानुसार नचाते रहते हैं, तथा जो गणपति के गणों के मय विराजमान हैं।

मृत्युभीतमृकण्डुसूनुकृतस्तवं शिवसधिै।
यत्रा कुत्रा : पठेहि तस्य मृत्युभयं भवेत्।।
पूर्णमायुमरोगितामखिलार्थसम्पदमादरम्।
चंद्रशेखर  एव तस्य ददाति मुत्तिफमयन्तत:।।10।।

जो भक्त, मृत्यु से भयभीत र्माकण्डेय मुनि के द्वारा रचित इस स्तोत्र का जहाँ कहीं भी भगवान् शिव के मन्दिर में, या उसके निकट पाठ करता है, वह पूर्ण आयु, आरोग्य, सभी प्रकार की सम्पत्तियों को, तथा आदर को प्राप्त करता है। स्वयं भगवान् चन्द्रशेखर ही उसको सहज में मुक्ति प्रदान करते हैं।




सौन्दर्यलहरी

सौन्दर्यलहरी महीं मूलाधारे कमपि मणिपूरे हुतवहं स्थितं स्वाधिष्ठाने हृदि मरुतमाकाशमुपरि । मनोऽपि भ्रूमध्ये सकलमपि ...